Saturday, September 22, 2012

एक गुमनाम लेखक की डायरी-22

केदार जी की कविताएं पढ़ते समय हमें यह कभी नहीं लगता कि हम कोई लयमुक्त या  छंदहीन कविता पढ़ रहे हैं। कहने की बात नहीं कि केदार जी ने लिखने की शुरूआत छंदबद्ध कविताओं से की थी और एक समय उनके गीत सुनने के लिए लोग सभागारों में बैठे इंतजार करते रहते थे। उन गीतों में क्या था कि नवगीत के पुरोधा कवियों के बीच भी केदार को अलग से सुनने का मन करता था। मेरी समझ से केदार जी के गीतों में एक तरह की भाषिक नवीनता तो थी ही, साथ ही उसमें उसमें अपने लोक, अपने अंचल की वाणी भोजपुरी की मिठास भी शामिल थी। अलावा इसके केदार जी के पास सर्वथा नूतन एक आधुनिक दृष्टि थी जो उनकी कविता में एक तरह की नवीनता के साथ जादू जैसा कुछ पैदा करती थी। 

केदार जी एक इंटरव्यू में याद करते हैं कि कविता से पहला परिचय उन्हें गांव में औरतों के द्वारा गाए जाने वाले गीतों की मार्फत हुआ। वे कहते हैं कि सुबह-सुबह अधनींदी अवस्था में कई बार कानों में भोजपुरी के लोक गीत सुनने को मिलते थे - उन गीतों का असर आज भी मेरे लेखन में है, इसे मैं कितना भी चाहूं, अस्वीकार नहीं कर सकता। उन गीतों में क्या जादू है, यह तो वही समझ सकता है, जो गांव में रहा हो और उस जिंदा जादू को पत्यछ देखा-सुना हो। केदार की कविताओं में एक तरह की सहजता के साथ जो जादू है, कहीं न कहीं उसका उत्स वे लोक गीत ही हैं, जिन्होंने केदार को कहीं गहरे प्रभावित किया है।

उनकी बोलने-बतियाने और उसी जौरान कोई गूढ़ बात कह देने की शैली भी रेखांकित करने लायक है। कई बार वे पाठकों से बातचीत के लहजे में कविता की शुरूआत करते हैं, कई बार पाठक से सवाल करते हैं कि अब क्या किया जाए, कि अब आप ही बताएं कि  अब  तो यह तय करना मुश्किल है इत्यादि। तात्पर्य यह कि उनके लिए पाठक कविता के बाहर की कोई वस्तु नहीं है, वे हर कविता के साथ पाठक को शामिल करते चलते हैं, जैसे कोई बच्चा इधर-उधर न जाए इसलिए उसका अभिभावक अपनी उंगली पकड़ा देता है। एक बार बच्चे ने उंगली पकड़ ली तो अभिभावक अपनी रौ  में अपनी राह चलता जाता है। केदार की कविता की रचना प्रक्रिया को इसी तरह समझने की जरूरत हमें महसूस होती  है।

उपर केदार जी के लोक गीतों से जुड़ाव की बातें कही गई हैं। भोजपुर अंचल में रहने वाला कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो लोक गीतों से अपना जुड़ाव न रखता हो। यह अलग बात है कि अब वे परंपराएं मिट रही हैं और लोक गीतों के नाम पर कुछ फूहड़ और अश्लील गीत ही बाजार में रह गए हैं। लेकिन केदार जी का जो समय रहा है, उस समय भोजपुरी लोकगीतों  में एक समृद्ध साहित्यिक एवं काव्यात्मक  तत्व दिखायी पड़ता है। भोजपुरी लोक गीतों के महानायक भिखारी ठाकुर के बारे में केदार जी के संस्मरणों को पढ़ने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि केदार जी का लोक और लोक गीतों से कितना गहरा जुड़ाव रहा है। यह गौर तलब है कि अपनी कविता की किताब 'उत्तर कबीर व अन्य कविताएं' में केदार जी ने भिखारी ठाकुर नाम से एक बहुत ही मार्मिक कविता भी लिखी है। 

नई कविता के मंच पर भिखारी ठाकुर नामक संस्मरणात्मक लेख उपरोक्त बातों की पुष्टि करता है। तो इस बात पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि केदार जी की शुरूआती कविताएं लयबद्ध हैं, उनमें गीतात्मकता है। हमारा कहने का मतलब यह है कि यह लयात्मकता और गीतात्मकता की गूंज हमें केदार जी की हर कविता में सुनाई पड़ती है। इसलिए जब हम आज की उनकी  कविताएं पढ़ते हैं, तब भी हमें लोकगीतों की लय और गीत की मिठास की गूंज उनकी कविताओं में सुन पाते हैं। यही केदार की कविता का जादू है तो सिर चढ़कर बोलता है और यही कारण है कि एक पूरी पीढ़ी उनकी कविताओं से प्रभावित है और पाठकों के बीच उनकी कविताएं असाधारण रूप से लोकप्रिय हैं।

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