बुधवार, 05.09.2012
कविता का लोक से क्या रिश्ता है। यह सवाल कई लोंगों ने कई तरह से उठाया है। लोक के पिछड़ेपन का सवाल भी कविता के साथ अक्सर उठाया जाता है और इस वजह से लोक संपृक्ति वाले कवियों को कमतर कर के आंकने की एक एक प्रवृति भी देखने में आती है।
मुझे कई बार लोगों की यह सब बातें समझ में नहीं आतीं। इमानदारी से कहूं तो कई लोगों की कविताएं मेरे लिए पहेली या बुझौअल की तरह हैं। कहते हैं कि ऐसी कविताएं विश्व कविता की कोटि में आती हैं। मतलब आकाश के माथे पर खिजाब लगाने की चिंता ज्यादा प्रबल होती है ऐसे कवियों की कविताओं में। लोक का कविता से रिश्ता का मतलब मेरी समझ में यही आता है कि ऐसी कविताएं लोक की तरह ही सहज और संप्रषणीय होती हैं। लोक में एक तरह की धूसरता होती है, जिसका अपना सौन्दर्य होता है। एक और बात मेरी समझ में आती है कि लोक संपृक्ति वाली कविताओं के पास अपनी एक समृद्ध जमीन होती है, एक लंबी साकारात्मक परंपरा और व्यवहार होता है जो मनुष्यता का एक सहज गुण है। मैं जब भी कविता लिखने बैठता हूं मेरे गांव का सबसे गरीब आदमी याद आता है, जिसके उपवास चूल्हे को मैंने अपनी आंखों से देखा है। अपनी आजी की वो आंखें देखी हैं जो अपने परदेश चले गए बेटे के इंतजार में पसीजती रहती थीं। बाबा की आंख का वह धुंआ देखा है जब सूखे या बाढ़ के समय उभर आती थीं और महीनों टिकी रहती थी।
मेरे लिए लोक का मतलब वह गांव है जहां 65 साल की आजादी के बाद भी अबतक बिजली नहीं पहुंची है और जहां आज भी फगुआ गाया जाता है, सिनरैनी सजती है और चइता की तान उठती है खलिहानों से। और वह गांव सिर्फ मेरा गांव नहीं है हिन्दुस्तान का एक गांव है जहां रहने वाले लोग इसी देश के वासी हैं, उसकी राजधानी भी दिल्ली ही है।
मेरे लिए लोक का मतलब आगे बढ़कर यह देश भी है जिसमें सैकड़ों गांव हैं, एक शहर भी है जहां लोगों के मन में गांव की हवा हांफती है। यह वह लोक है जो अपनी जमीन पर खड़े होकर संसार की ओर मुंह उठाए देख रहा है, और कहता है कि तुम्हें हमारी हालत के लिए शर्मिंदा होना चाहिए। वह लोक जमीन और आसमान के बीच खड़ा एक ऐसी जगह है जहां मनजत्व के पौधे अंकुरित होते हैं।
मेरे लिए कविता से लोक का रिश्ता कविता से मनुष्यता के रिश्ते की तरह है जिसकी आज सबसे अधिक जरूरत है। कविता ज्यों-ज्यों वैश्विक होती जाएगी, आदमी से उसका रिश्ता कम होता जाएगा। कविता का आदमी से संबंध क्या और क्यों है, यह बताने की जरूरत नहीं। लोक संपृक्त कविता का अर्थ जमीन की कविता है जो आसमान को संबोधित है।
मेरी तो यही समझ है। बाकी समझदार लोगों की समझ से कविता का कितना भला होगा, यह तो समझदार लोग ही जानें। अपन तो बस जो लिख रहे हैं, वह जाहिर है।
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