कविता में अनुभव और समृतियों का क्या महत्व है। क्या बिना अनुभव के कविता लिखी जा सकती है। उसी तरह बिना स्मृति के। मुझे बार-बार लगता है कि कविता शब्द या भाषा से नहीं लिखी जाती। अगर ऐसा होता तो दुनिया के सारे लोग जो बोलना और लिखना जानते हैं वे सब कवि होते। लेकिन ऐसा नहीं है तो इसका कारण यह है कि कविता भी अन्य कलाओं की तरह एक कला है और इस कला को अभ्यास कर के सीखना होता है। अभ्यास हमें सिर्फ शब्द और भाषा को बरतना सिखाती है। बाकी चीजें जिनमें अनुभव और समृति भी शामिल है, वह हर मनुष्य के लिए अलग होती हैं। सिर्फ समृति या सिर्फ अनुभव के दम पर बड़ी कविता या बड़ी कला का सृजन लगभग असंभव है।
कविता में एक व्यक्ति का अनुभव जब बहुतों का अनुभव बन जाता है, जब एक व्यक्ति की स्मृति बहुतों की समृति पर पड़ी धूल-गर्द साफ कर देती है, तब सही मायने में वह अनुभव और वह स्मृति कविता या कला कही जाती है।
कविता एक तरह की फ्लैश है। जैसे कैमरे का फ्लैश होता है। हमारे देखते न देखते चमक कर गायब हो जाता है। कविता भी हमारे मन में एक फ्लैश की तरह उठती है, उस फ्लैश को पकड़ना होता है। कई बार बिना फ्लैश के भी कविता लिखी जाती है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि धुंधली तस्वीर की तरह वह और धुंधली न हो जाए। कवि को कविता में उस फ्लैश को छुपाना होता है, वह छुपा हुआ फ्लैश जब पाठक के मन में कौंधता है तो कविता कम्युनिकेट होती है। मेरे हिसाब से कविता का संप्रेषित होना सही-सही उस कविता और लिखने वाले कवि की सफलता होती है..।
यह जरूरी नहीं कि लिखे हुए हर शब्द या वाक्य में कविता हो। कविता का वह फ्लैश पूरी कविता के बीच कहीं छुपा होता है। कई बार वह अपने आप चमक जाता है, कई बार इसके लिए कोशिश करनी होती है।
कविता की कोई उम्र होती है क्या? जैसे हमारी आपकी होती है? कविता का घर कहां होता है? कविता रोती या हंसती भी है हमारी तरह ? उसे भी गुस्सा आता है? प्यार आता है, नफरत होती है????
क्या कविता सपने में कवि को या पाठक को परेशान कर सकती हैं ?
क्या कविता भी सांस लेती है, बिमार पड़ती है, और उसे भी दवाइयों की जरूरत होती है ?
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