Friday, January 18, 2013

एक गुमनाम लेखक की डायरी -35

बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं। इस बीच उपन्यास में लगा हुआ हूं। नया अमुभव है - पहला उपन्यास वह भी एक जिवीत व्यक्ति पर।  लेकिन उपन्यास चाहे जीवित व्यक्ति पर हो या काल्पनिक या मृत, आप उसे शब्दों और अनुभवों के सहारे खड़ा करते हैं। हो सकता है कि उपन्यास में जिस व्यक्ति को मैं केन्द में रख रहा हूं वह वास्तव में वैसा न हो। यह सही है और मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूं कि एक समय ऐसा आता है जब कथा और पात्र पर लेखक का अपना वश नहीं रह जाता। पात्र अपने रास्ते खुद तलाशते हैं और कथा अपनी रौ में आगे बढ़ती है यदि उस रौ को लेखक बाधित करे तो संतुलन बिगड़ सकता है। उपन्यास तो बहरहाल अभी अधूरा ही है लेकिन न लिखते हुए भी वह निरंतर मेरे मन में चल रहा है।
उपन्यास लेखन एक गहन धैर्य और गंभीर लेखकीय संतुलन की मांग करता है। 
उपन्यास के लिए जरूरी होता है कि आप और कुछ न करते हुए एक खास समय में बहुत दिन तक रहें - उस खास समय में जिसमें आपके उपन्यासकी कथा है।
उपन्यास लेखन एक निर्जन द्वीप में किसी असंभ्रेमिका के साथ रौमांस करने जसा है। 

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