- किस जगह जाने के लिए यह मन छटपटाता है - किस कोने-अंतरे में, जहां कुछ पल निस्संग रहा जाय। कविता के लिए नहीं - किसी तरह के लेखन के लिए भी नहीं। सिर्फ उस निस्संगता के साथ रहने के लिए। विस्मृति के साथ - एकदम ऐसे कि मेरा कोई नाम न हो, पता न हो, जाति धर्म कुछ भी न हो। मन हहरता है ऐसे पलों के लिए... मिलता नहीं वह पल...जो सिर्फ मेरा हो - उसमें किसी की हिस्सेदारी न हो।
- सोचता हूं कि दो महीने की छुट्टी पर चला जाऊं और सबकुछ भूलाकर अपना उपन्यास पूरा कर सकूं। एक उपन्यास जो कुछ तो लिखा गया है, लेकिन बाकी मन की अंतरगुहाओं में बंद है। किसी भी चरित्र से अब तक ढंग से बतिया नहीं पाया। कई के चेहरे तक याद नहीं। उनसे मिलने के लिए एक ऐसी जगह चाहिए जहां वे निर्भय होकर आ सकें - रह सकें। अपनी बातें कह सकें। लेकिन यह हो नहीं पाता। नौकरी और घर के बीच समय का इतना पतला धागा है, जिसपर ठीक से चलना भी मुहाल है...सोचता हूं....सोच रहा हूं....।
- कविता की किताब का अंग्रेजी अनुवाद होकर आया है। आजही भेजा कल्पना राजपूत ने। करीब डेढ़ साल के बाद। उनकी मेहनत के सामने नतमस्तक हूं। अब तक एक भी कविता नहीं पढ़ी, सिर्फ प्रिंट ले लिया है। कुछ दिन पहले बांग्ला का अनुवाद देखा था। वह लगभग पूरा हो चुका है, उसकी फाइनल ड्राफ्ट आने वाला है।
- सुबह से मन उदास है। तबियत कुछ ठीक नहीं शायद इस वजह से। या पता नहीं किस कारण।
- एक देश और मरे हुए लोग सिरिज की एक कविता परेशान कर रही है- सोचा था आज उससे बात करूंगा- कि क्या चाहती है। लेकिन पूरे दिन इधर-उधर के निरर्थक काम में उलझा रहा। अब सोच रहा हूं कि उसे लेकर बैठूं। एक पागल आदमी की चिट्ठी सिरिज की 9 कविताएं वसुधा को भेजनी है, उसे भी एक बार फिर से देख लेना चाहता था, लेकिन नहीं हुआ। बात कल तक के लिए टल गई है।
- कविता कोशिश कर के नहीं लिखी जा सकती। कम से कम मैं तो नहीं लिख सकता। वह आपने आप आती है..तब तक के लिए इंतजार करना होता है..। आजकल वह ईंतजार चल रहा है। एक फिल्म पर कुछ लिखना है.. पथेर पंचाली से बेहतर फिल्म कौन सी हो सकती है लिखने के लिए...। कुंअर नारायण की एक भी कविता ठीक से नहीं पढ़ी..लेकिन ओम जी को वादा कर चुका हूं- लेख भेजने के लिए...। इस तरह के दबाव मैं खुद ओढ़ता हूं कभी-कभी ताकि खुद को सक्रिय रखा जा सके..। वर्ना तो मैं कितना आलसी हूं..वह मैं ही जानता हूं...।
- एक कहानी राह देख रही है...और मैं मुंह चुराए भाग रहा हूं...। लेकिन कब तक..???
Wednesday, October 17, 2012
एक गुमनाम लेखक की डायरी- 32
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