Tuesday, October 16, 2012

एक गुमनाम लेखक की डायरी - 31

बात जन्मकुंडली से ही शुरू होती है। मेरे साथ काम करने वाले प्रायः सभी लोगों की जन्मकुंडली है। मेरे एक बहुत अच्छे मित्र जो, कलकत्ता विश्वविद्यालय में मेरे सिनियर भी थे, एक अच्छे ऑस्ट्रोलॉजर हैं। उन्होने भी पूछा कि कुंडली लेकर आओ फिर तुम्हारे बारे में बताऊंगा। मैंने कहा की मेरी तो कोई जन्मकुंडली ही नहीं है। आपकी है क्या? वैसे हो या न हो इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ना मुझे। लेकिन इस कुंडली के लिए सही जन्मतिथि की जरूरत पड़ती है, यह बात पता चली और मित्रों ने बतायी। 

मैंने मां से पूछा - तोरा पता बा माई हमार जन्म कब भईल रहे? मां सोच में पड़ गई। बोली कि जिस साल बड़की बाढ़ आयी थी ना उसी साल तुम्हारा जन्म हुआ था, बुधवार का दिन था, जाड़ा भी पड़ रहा था और  आधी रात का समय था। मैंने कहा कि क्या पिताजी ने समय दिन तारीख लिखा नहीं था तो उसका जवाब था कि पिता तो कलकत्ते में थे। और कौन था जो लिख सकता। बाबा को तो लिखने आता नहीं है, हां उसके बाद पंडित जी आए थे और कहा था कि लड़का सतइसा में पड़ा है और इसका नाम ध से होना चाहिए। इसलिए तुम्हारा नाम धनोल हुआ। पूरा नाम धनोल पति तिवारी।

बचपन में बाबा मुझे धनोलपति ही कहते थे। यह नाम राशि का था। पुकार का नाम विमलेश। जिसे गांव में मेरे दोस्त भीमलेस कहते। भीम जोड़ने से मेरे नाम को पुकारना उनके लिए आसान हुआ करता था। मुझे याद है जब बाबा पहली बार मेरा नाम स्कूल में लिखवाने गए थे तो जब हेडमास्टर ने पूछा तो उन्होने मेरा नाम भीमलेस ही बताया था, लेकिन मैंने तुरंत कहा कि नहीं भीमलेस नहीं बिमलेश ( मुझे बाद में पता चला कि सही नाम विमलेश है)। उस समय की बात अब भी याद है, इसके पहले बच्चा क्लास में मैं पढ़ने जाता था, उस क्लास में पढ़ने के लिए नाम लिखवाने की जरूरत नहीं पड़ती थी। जो भी हो, मां की बातों से मैं भयंकर संसय में पड़ गया। पिता से पूछने पर भी कुछ खास मालूम नहीं हुआ। वे यही कहते रहे कि  साल 80 के पहले ही तुम्हारा जन्म हुआ है लेकिन किस साल यह बताना मुश्किल है। 
फिर बात लगभग आयी गई हो गई। माध्यमिक परीक्षा में विद्यालय के मास्टर साहब ने एक जन्म दिन और वर्ष अपने से लिखकर बोर्ड में भेज दिया। और वही  प्रमाण-पत्र के हिसाब से मेरा जन्मदिन  हो गया। मेरे साथ आजीब बात यह रही है कि मैं अपनी कक्षा में और बच्चों से बड़ा दिखता था, बचपन से ही मेरी लंबाई अच्छी थी और शरीर भी हृष्ट-पुष्ट था। आज भी मेरी लंबाई 6 फीट के करीब है। मुझे लगता है कि विद्यालय के माट साहब ने मेरी उम्र बढ़ाकर लिख दी। और उस जन्म से  मेरी कुंडली तो  नहीं बन सकती थी - राजीव दा का भी यही कहना था।

कुछ दिनों पहले  मेरे अग्रज कवि बोधिसत्व का फोन आया। पूछने लगे कि कि तुम्हारा जन्म वर्ष क्या है। मैंने कहा कि दादा ये तो मुझे पता नहीं। जो है वह सही नहीं है। उन्होंने कहा कि पता करो और सही जन्म वर्ष बताओ। लोग पूछते हैं कई बार तो मैं बता नहीं पाता। कई लोग तो य.ह भी कहते हैं कि तुम अपनी उम्र छुपाते हो।  मैं सोच में पड़ गया। मैंने उनको आश्वस्त किया कि जल्दी ही पता कर के सही उम्र बताता हूं क्योंकि प्रमाण पत्र में जो उम्र है वह सही नहीं है। कम से कम  जिस जगह मैं  उम्र सही लिख सकता हूं, वहां तो सही लिखूं। प्रमाणपत्र पर तो मेरा अदिकार नहीं है लेकिन साहित्य जगत में लोगों को सही उम्र बताना तो मेरा अधिकार है, और कर्तव्य भी।

अभी पिछले दिनों मैं गांव गया था तो मेरे भानजे ने पूछा कि आपकी सही उम्र क्या है।  वह बनारस में संस्कृत से आचार्य कर रहा है और ज्योतिष में उसकी रूचि है। कहने लगा कि मैं कुंडली बनाना सीख रहा हूं और मेरी ख्वाहिश है कि मैं आपकी कुंडली बनाऊं। मैं क्या जवाब देता। मैंने कहा कि अपनी नानी से पूछ लो, क्योंकि मैं जो जन्म वर्ष या तारीख बाताऊंगा वह सही नहीं है। तुम्हें तो सही-सही सब कुछ चाहिए। उसन् हां में सिर हिलाया और सीधे नानी यानि मेरी मां के पास पहुंचा। 

मां  को एक और बात याद आयी कि उसके एक-दो साल पहले चाचा का गौना हुआ था। वह चाचा के पास पहूंचा कि किस वर्ष उनका गौना हुआ यह जान सके। मैं जानता था कि यह गुत्थी सुलझने वाली नहीं है। मैं आराम से काशीनात सिंह की किताब घर का जोगी जोगड़ा पढ़ रहा था। 

और सोच रहा था कि अगर नामवर जी के साथ भी ऐसा हुआ होता या काशीनाथ जी के साथ यह हुआ होता, तो वे क्या करते।  भानजा  मेरी सोच में खलल डालता हुआ आया।  सुनिए मैं सारी बातें पता कर रहा हूं- मैं अपनी मां ( मेरी मझली बहन) से भी बात करूंगा और पता कर लूंगा कि आपके जन्म का वर्ष क्या है और दिन तारीख निकालने का एक फॉर्मूला है मेरे पास। मैं चुपचाप उसकी बातें सुनता रहा - और 15-16 साल के उस बच्चे के उत्साह को देखता रहा। मैंने सोचा कि अगर यह काम हो जाए तो मैं  बोधि दा को बता दूंगा सही-सही। 

मैं कोलकाता लौट आया और बात आयी गई हो गई। मैंने केदारनाथ सिंह पर एक लेख लिखा। वह लेख बड़े भाई अनंत कुमार सिंह के कहने पर लिखा था, जो जनपथ के संपादक हैं। लेकिन अपने परिचय वाले  अंश में  जन्म की तारीख न देखकर सोच में पड़ गया।  मुझे पूरी घटना याद हो आयी। मैंने तुरंत बच्चे को फोन लगाया - फोन पर वही था। 

कहा कि आपके जन्म के वर्ष का पता लगा लिया है - यह 1979 है। बाकी दिनांक और समय को लेकर कुछ संशय है- वह भी दूर कर लूंगा। मैंने कहा कि क्या तुम निश्चित कह रहे हो कि यह वर्ष 1979 ही है। सौ फीसदी- उसका कहना था। मैं अब तक 77-78 मानकर चल रहा था अपने हिसाब के मुताबिक - मैंने अपनी बात बतायी।

1979 सही है। अब अपने सारे संशय मिटा दिजिए। यही ठीक है और अपनी किताबों और पत्रिकाओं में भी यही वर्ष लिखा किजिए। मैंने उस लेख के साथ परिचय के उस अंश में लिखा - सही जन्म वर्ष 1979 और उसे ई-मेल कर दिया।

बोधिसत्व दा को अबतक नहीं बतायी यह बात। लेकिन अब मैंने मान लिया है कि मेरे जन्म का वर्ष यही रहेगा। बाकी 7 अप्रैल  को पता नहीं कितनी बार अपना जन्मदिन मना चुका हूं। तो उससे एक मोह-सा हो गया है। भानजा सही तारीख की खोज में है और उसी के आधार पर जन्मकुंडली भी बनाएगा शायद। मुझे जन्मकुंडली से क्या लेना। लेकिन अब मेरी जन्म की तिथि निश्चित है और वह है - 7 अप्रैल, 1979।

मैं अपने परिचय  की फाईल खोलता हूं और लिख देता हूं - जन्म 7 अप्रैल, 1979, बक्सर, बिहार के एक गांव हरनाथपुर में।

एक सकून -सा महसूस हो रहा है। अस्तु।